जय श्री महाकाल (Ujjain Mahakal Mandir): देश के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर | हिंदू धर्म में 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व माना गया है। जिसमे से एक है महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर। सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर मंदिर का विशेष स्थान माना गया है यह मंदिर बहुत ही प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ भगवान भोलेनाथ का एक सुप्रसिद्ध स्थान है। इसका उल्लेख कई वेद, पुराणों में मिलता है। धार्मिक नगरी उज्जैन पूरी दुनिया में काफी मशहूर है, क्योकि यहाँ पर हमारे महाकाल बाबा विराजमान है उज्जैन के भगवान महाकालेश्वर की ख्याति दूर-दूर तक है. कहते हैं कि यहां आने वालों की झोली कभी खाली नहीं जाती इसके अलावा हर 12 साल में कुंभ मेले का भी आयोजन किया जाता है, जो सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है। इस शहर की और भी कई ऐसी बातें जिससे आप शायद आज तक अनजान हैं तो चलिए जानते हैं इस शहर से जुड़ी कुछ बातें-
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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Ujjain Mahakal Mandir) की पौराणिक कथा :
Mahakal Mandir Ujjain: पौराणिक कथा के अनुसार अवंती नाम से एक नगरी थी है। जो भगवान शिव को बहुत प्रिय थी। इसी नगर में वेद प्रिय नाम का एक ज्ञानी ब्राह्मण रहता था, जो बहुत ही बुद्धिमान था और शिव का बड़ा अनन्य भक्त था। वह हर रोज पार्थिव शिवलिंग बनाकर शिव की आराधना करता था। वहीं रत्नमाल पर्वत पर रहने वाले दूषण नाम के राक्षस को ब्रह्मा जी से एक वरदान मिला था। इसी वरदान के कारण दूषण नाम का राक्षस धार्मिक व्यक्तियों पर आक्रमण करने लगा था। उसने उज्जैन के ब्राह्मणों पर आक्रमण करने का विचार बनाया और अवंती नगर के ब्राह्मणों को अपनी हरकतों से परेशान करना शुरू कर दिया। वह ब्राह्मणों को कर्मकांड करने से मना करने लगा, लेकिन ब्राह्मणों ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। वो राक्षस ब्राह्मणों को रोज परेशान करने लगा। जब राक्षस ने अपनी सीमा पार कर दी, तब परेशान होकर ब्राह्मणों ने शिव-शंकर (Ujjain Mahakal Mandir) से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करना शुरू कर दिया।
शिव (Ujjain Mahakal Mandir) की हुंकार मात्र से भस्म हुआ राक्षस :
भोलेनाथ (Ujjain Mahakal Mandir) ने नगरवासियों को दूषण राक्षस के अत्याचार से बचाने के लिए पहले उसे चेतावनी दी, लेकिन दूषण राक्षस पर इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ और चेतावनी देने के बाद भी उसने नगर पर हमला कर दिया। इसके बाद भोलेनाथ के क्रोध का ठिकाना नहीं रहा, वह चरम सीमा पर पहुँच चूका था। भोलेनाथ धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए। शिवजी ने अपनी हुंकार से दूषण राक्षस को भस्म कर दिया। इसके बाद सभी ब्राह्रणों ने महादेव से यहीं विराजमान होने के लिए प्रार्थना की। माना जाता है कि ब्राह्मणों के निवेदन पर शिव जी यहां महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने लगे।
पृथ्वी का नाभि स्थल है महाकाल (Ujjain Mahakal Mandir) की नगरी :
उज्जयिनी आदि काल से देश की सांस्कृतिक राजधानी है। महाकाल ((Ujjain Mahakal Mandir)) की यह नगरी भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली रही है। मध्य प्रदेश के मध्य में बीच स्थित धार्मिक और पौराणिक रूप से प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। भारत में कर्क रेखा उज्जैन से ही गुजरती है। देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल मंदिर उज्जयिनी में स्थित है। यह पृथ्वी का नाभि स्थान है और धरा का केन्द्र भी है। इसलिए खगोल, वेध, यंत्र और तंत्र के लिए उज्जैन का विशेष महत्व है। शिप्रा नदी के तट पर बसे उज्जयिनी शहर में हर 12 वर्ष में सिहंस्थ कुंभ का आयोजन किया जाता है। बताया जाता है कि पवित्र शिप्रा नदी में डुबकी लगाने मात्र से लोगों को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महाकाल की नगरी उज्जैन जहां के कण-कण में महादेव का वास है।
उज्जैन के प्रमुख धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल :
हरसिद्धि मंदिर उज्जैन (Harsiddhi Mandir Ujjain):
Harsiddhi Mandir Ujjain: मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन को मंदिरों (Ujjain Mahakal Mandir) की नगरी भी कहा जाता है। भारत एक ऐसा देश है, जहां देवी-देवताओं को बहुत ही आस्था के साथ पूजा जाता है। व्यक्ति अपने तरीके से अपने आराध्य को पूजता है। देश भर में दुर्गा के कई मंदिर मौजूद है। जहां अलग-अलग रूप में माता निवास करती हैं। देश में हरसिद्धि देवी के कई प्रसिद्द मंदिर स्तिथ है, लेकिन उज्जैन में स्तिथ हरसिद्धि मंदिर सबसे प्राचीन है। हरसिद्धि मंदिर की गिनती 52 शक्तिपीठों में की जाती है। उज्जैन की रक्षा के लिए आस-पास देवियों का पहरा है। जिस जगह पर माता हरसिद्धि का मंदिर है। वहां पर माता सती की कोहनी गिरी थी। वेदों और पुराणों में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। मंदिर के सामने खूबसूरत सप्त सागरों में से एक रुद्रसागर बना हुआ है, जो इसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा देता है।
हरसिद्धि मंदिर में स्थापित माता की प्रतिमा के ठीक सामने दो दीप स्तंभ बने हुए हैं, जिन्हें नवरात्रि के पावन अवसर पर जगमग रोशनी से सजाया जाता है और ये आने वाले भक्तों का मन मोह लेते हैं। इन दोनों स्तंभों पर कुल 1100 दीपक जलते है। जिन्हें जलाने के लिए एक बार में 60 किलो तेल खर्च होता है। इसमें से एक स्तंभ बड़ा है और एक छोटा है, लेकिन जब इन्हें माता की आरती के वक्त प्रज्वलित किया जाता है तो यह नजारा बहुत ही अलौकिक और अद्भुत होता है। जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं।
गोपाल मंदिर उज्जैन (Gopal Mandir Ujjain):
Gopal Mandir Ujjain: गोपल मंदिर का निर्माण दौलतराव सिंधिया की पत्नी बयाजी बाई द्वारा करवाया गया था। बयाजीबाई महाराज दौलत राव शिदे की रानी थीं। द्वारकाधीश गोपाल मंदिर लगभग दो सौ वर्ष पुराना बताया गया है। गोपाल मंदिर में भगवान की मूर्ति चांदी के रूप में लगभग 2 फीट ऊंची है। मूर्ति को संगमरमर से जड़ी वेदी और चांदी से बने दरवाजों पर रखा गया है। मंदिर के चांदी के दरवाजे आकर्षण का केंद्र है। मंदिर में प्रवेश करते ही हमें गहरी शांति का अहसास होता है। गोपाल मंदिर में भगवान द्वारकाधीश, शंकर, पार्वती और गरुड़ भगवान की मूर्तियाँ हैं। ये मूर्तियाँ अचल है और एक कोने में वायजा बाई की भी मूर्ति है। यहाँ जन्माष्टमी के अलावा हरिहर का पर्व भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हरिहर के समय भगवान महाकाल की सवारी रात बारह बजे आती है, तब यहाँ हरिहर मिलन यानी विष्णु और शिव का मिलन होता है। लाखों की संख्या में श्रद्दालु यहाँ आते है।
महर्षि सांदीपनि आश्रम उज्जैन (Maharshri Sandipani Aashram Ujjain):
Maharshri Sandipani Aashram: भगवान कृष्ण ने सांदीपनि आश्रम में ली थी शिक्षा, बलराम और सुदामा थे सखा। भगवान कृष्ण के जन्म से जुड़ी बातें जब भी होती हैं, तब मध्यप्रदेश के उज्जैन के सांदीपनि आश्रम का जरुर ख्याल आता है। इसी आश्रम में भगवान श्री कृष्ण ने 64 दिन पढ़ाई करके 64 विद्याएं और 16 कलाएं सीखकर पहले जगत गुरु बने। इस समय श्री कृष्ण के साथ भगवान बलराम और सुदामा भी साथ पढ़ते थे। यह आश्रम करीब 5 हजार 273 साल पुराना है। श्रीकृष्ण ने केवल 11 वर्ष 7 दिन की उम्र में 64 विद्या और 16 कलाओं का ज्ञान कर लिया था। श्री कृष्ण ने मामा कंस का वध करने के बाद महाकालेश्वर की नगरी अवंतिका (उज्जैन) में आने के बाद वे 64 दिनों तक यहां रूके थे। इन 64 दिनों में ही श्री कृष्ण ने यह शिक्षा प्राप्त की।
महाभारत, श्रीमद्भागवत, ब्रह्मपुराण तथा अग्न्नीपुराण जैसे महान ग्रंथो में भी सांदीपनी आश्रम का उल्लेख मिलता है। सांदीपनी आश्रम को श्रीकृष्ण की विद्यास्थली के नाम से जाना जाता है। यहाँ भगवान श्री कृष्ण की बेठी हुई प्रतिमा के दर्शन होते है और अन्य मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण बांसुरी बजाते नजर आते है। भगवान श्रीकृष्ण यहा बाल रूप में विद्यमान है, उनके हाथो में स्लेट और कलम दिखाई देती है। जब श्री कृष्ण ने सांदीपनी आश्रम में विद्या प्राप्त की थी, तब गुरु सांदीपनी ने स्लेट पर तीन मंत्र लिखवाए गये थे। यहा परंपरा आज भी चल रही है। आज भी बच्चो को विद्यांरभ संस्कार में मंत्रो की जगह अ, इ, ई, उ, ऊ और ए, बी, सी, डी तथा 1, 2, 3, 4, 5 लिखवाए जाते है.
बड़े गणेशजी का मंदिर उज्जैन (Shree Bada Ganesh Mandir Ujjain) :
Shree Bada Ganesh Mandir Ujjain: दुनिया भर में गणपति बप्पा के कई मंदिर हैं। जिसमे से एक है यह मंदिर। इस मंदिर को बड़ा गणेश मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां पर स्थापित गणेश जी की मूर्ति विश्व की ऊंची प्रतिमाओं में से एक है। इसके साथ ही यह मूर्ति सीमेंट से नहीं बल्कि मसालों से बनी है। गणपति बप्पा का यह अनोखा मंदिर उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर (Ujjain Mahakal Mandir) के पास स्थित है। इस मंदिर में भगवान गणेश की एक विशाल प्रतिमा है। इस प्रतिमा का आकार का बड़ा होने की वजह से इन्हें बड़े गणेशजी के नाम से जाना जाता है। मंदिर में स्थापित गणेश प्रतिमा की स्थापना महर्षि गुरु महाराज सिद्धांत वागेश पं. नारायणजी व्यास ने करवाई थी। बप्पा की इस मूर्ति में सीमेंट का नहीं बल्कि गुड़ और मेथी दानों का प्रयोग किया गया है। साथ ही इस मूर्ति के निर्माण में ईंट, चूने, बालू और रेत का प्रयोग किया है।
इस मूर्ति को बनाने में सभी पवित्र तीर्थ स्थलों का जल भी मिलाया गया था। इसके अलावा सात मोक्षपुरियों मथुरा, द्वारिका, अयोध्या, कांची, उज्जैन, काशी और हरिद्वार से लाई हुई मिट्टी भी मिलाई गई थी। गणेश जी की इस प्रतिमा को बनाने में ढाई वर्ष का समय लगा था। मंदिर में स्थापित गणेशजी की प्रतिमा लगभग 18 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी है। प्रतिमा में भगवान गणेश की सूंड दक्षिणावर्ती है। गणेश जी की प्रतिमा के मस्तक पर त्रिशूल और स्वास्तिक बना हुआ है। दाहिनी ओर घूमी हुई सूंड में एक लड्डू दबा हुआ है। भगवान गणेशजी के कान विशाल और गले में पुष्प माला है। दोनों ऊपरी हाथ जप मुद्रा में और नीचे के दाएं हाथ में माला व बाएं में लड्डू की थाल है।
शनि मंदिर उज्जैन (Shani Mandir Ujjain) :
Shani Mandir Ujjain : भारत में बहुत सारे मंदिर है। सब मंदिरों की अलग-अलग पहचान हैं। जिस मंदिर के बारे में हम बात कर रहे हैं वह मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर स्तिथ है। पहला नवग्रह मंदिर एकमात्र शिव मंदिर भी है, जहां शनिदेव को स्वयं भगवान शिव (Ujjain Mahakal Mandir) के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। शनि मंदिर लगभग 5000 साल पुराना है। शनि मंदिर की खास बात यह है कि यहां शनि देव के साथ-साथ अन्य नवग्रह भी हैं, इसलिए शनि मंदिर को नवग्रह मंदिर भी कहा जाता है। लगभग दो हजार साल पहले इस मंदिर की स्थापना राजा विक्रमादित्य ने की थी। यहां शनिदेव की दो प्रतिमाएं राजा विक्रमादित्य द्वारा स्थापित की गई थी। एक शनि देव की है तथा दूसरी ढैया शनि देव की, जो लोग शनि की ढैया से परेशान होते हैं वे यहां दर्शन करने आते हैं। कहा जाता है कि विक्रमादित्य ने इस मंदिर के बनाने के बाद ही विक्रम संवत की शुरुआत की थी। यह शनि मंदिर पहला मंदिर है, जहां शनि देव शिव के रूप विराजमान है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामना के लिए शनिदेव पर तेल चढ़ाते हैं। कहा जाता है कि यहां साढ़े साती और ढय्या की शांति के लिए शनि देव पर तेल चढ़ाया जाता है।
कालभैरव मंदिर उज्जैन (Kal Bhairav Ujjain):
हमारे देश में ऐसे अनेक मंदिर हैं, जो अपनी अनोखी परम्पराओ के लिए जाने जाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर मप्र के उज्जैन में स्थित भगवान काल भैरव का है। माना जाता है कि श्री काल भैरव मंदिर 6000 वर्षों से भी अधिक समय से उज्जैन में स्थित है।इसका उल्लेख स्कंद पुराण में भी देखनो को मिलता है। काल भैरव मंदिर पवित्र शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। काल भैरव मंदिर, मंदिरों की नगरी और महाकाल की नगरी उज्जैन में बहुत लोकप्रिय पवित्र स्थानों में से एक है। यह मंदिर आठ भैरवों में से प्रमुख, भगवान शिव (Ujjain Mahakal Mandir) के उग्र रूप और उज्जैन शहर के संरक्षक, काल भैरव को समर्पित है।
इस मंदिर में शिव अपने भैरव स्वरूप में विराजमान हैं। कल भैरव मंदिर का मुख्य आकर्षण केंद्र यह है कि यहां मुख्य देवता काल भैरव को विशेष मंत्र के साथ शराब चढ़ाई जाती है। ऐसी मान्यता है की काल भैरव मंदिर में शराब चढाई जाती है और काल भैरव भी मदिरा को प्रसादी के रूप में स्वीकार करते है। काल भैरव मंदिर में दिन में दो बार आरती होती है। एक सुबह साढ़े आठ बजे और दूसरी आरती रात में साढ़े आठ बजे की जाती है। महाकाल (Ujjain Mahakal Mandir) की नगरी होने से भगवान काल भैरव को उज्जैन नगर का सेनापति भी कहा जाता है। कहा जाता है कि यहां मराठा काल में महादजी सिंधिया ने युद्ध में विजय पाने के लिए भगवान को अपनी पगड़ी अर्पित की थी। उन्होंने भगवान काल भैरव से युद्ध में अपनी जीत की प्रार्थना की थी और कहा था कि युद्ध में विजयी होने के बाद वे मंदिर का जीर्णोद्धार करेंगे। कालभैरव की कृपा से महादजी सिंधिया युद्धों में विजय प्राप्त की।
महादजी सिंधिया ने युद्ध में विजय हासिल करने के बाद मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। उस समय से मराठा सरदारों की पगड़ी भगवान काल भैरव के शीश पर पहनाई जाती है। वैसे तो यहां साल भर में कई जगह से बहुत संख्या में श्रद्धालु आते हैं, लेकिन रविवार की पूजा का यहां विशेष महत्व माना जाता है। जिस प्रकार सोमवार का दिन महाकाल शिव (Ujjain Mahakal Mandir) का माना जाता है। उसी प्रकार रविवार का दिन काल भैरव जी का भी माना जाता है। बाबा काल भैरव के भक्तों के लिए उज्जैन का भैरो मंदिर किसी धाम से कम नहीं। सदियों पुराने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसके दर्शन के बिना महाकाल (Ujjain Mahakal Mandir) की पूजा भी अधूरी मानी जाती है।
निष्कर्स :
दोस्तों, दुनिया में ऐसी कई महाशक्ति हैं जो इस मायारुपी संसार को चला रही है। इस महाशक्ति को ही भगवान माना जाता है। जो लोग सच्चे दिल से भगवान की आराधना करते हैं और उन पर विश्वास रखते है, वे अपने जीवन में सफलता जरूर हासिल करते हैं। हमने आपको उज्जैन के धार्मिक स्थल के बारे में विस्तार से बताया है।
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