Jai Shree Ram : भगवान श्री राम इस ब्रह्माण्ड के कण-कण में व्याप्त हैं उनसे परे इस संसार में कुछ है ही नहीं। भक्त वत्सल मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की उपासना तीनों लोकों में सुख देने वाली है। भगवती पद्मासना कमला ने पद्मपुष्पों के द्वारा जिन रघुनन्दन भगवान श्री रामचन्द्र के पादपद्मों की अर्चना की, विष्णु जी के नाभि पद्म पर स्थित ब्रह्माजी ने भी भगवती लक्ष्मी के कृपा कटाक्ष की प्राप्ति के लिये जिन पाद पद्मों का स्तवन किया था, वेदों द्वारा जिनकी निरंतर स्तुति की जाती है, जो समस्त सुख एवं आनन्द के एकमात्र आश्रय स्थल हैं तथा जो समस्त कल्याण के स्वरूप भगवान शंकर का भी नित्य कल्याण करने में समर्थ हैं ऐसे भगवान श्री रामचन्द्र जी की आराधना समस्त सुख व ऐश्वर्य प्रदान करने वाली है।
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Jai Shree Ram : जब-जब धर्म का लोप होता है तो वेदमार्ग की रक्षा के लिये भगवान अवतार लेते हैं।
शास्त्र साक्षी है कि जब-जब धर्म का लोप होता है तो वेदमार्ग की रक्षा के लिये भगवान अवतार लेते हैं। भगवती सीता उनकी महाशक्ति योगमाया है और उनके अनुज लक्ष्मण साक्षात शेषावतार हैं। भगवान श्री राम (Jai Shree Ram) का स्वरूप बुद्धि से परे अत्यंत अकथनीय और अपार है। भगवान राम (Jai Shree Ram) सर्वत्र विद्यमान हैं। महर्षि वाल्मीकि जो त्रिकाल दर्शी थे उनसे जब भगवान राम ने वनवास के दौरान अपने रहने के लिये स्थान पूछा तो महर्षि ने कहा कि संसार में ऐसा कोई स्थान नहीं दिखता जहाँ आप नहीं हो एवं उन्होंने भगवान से ही प्रतिप्रश्न कर दिया कि आप ही ऐसा कोई स्थान बता दे जहाँ आप नहीं हो तो फिर मैं आपको वहाँ रहने की सलाह हूँ।
एक ही फल प्राप्त करने की इच्छा रखे और वह यह है कि भगवान राम (Jai Shree Ram) में प्रेम।
प्रभु श्री राम (Jai Shree Ram) के भक्तों को किसी से कोई अपेक्षा नहीं रहती क्योंकि भगवान के पास क्या नहीं है? और वह कौन सी वस्तु है जिसे वे अपने भक्त को नहीं दे सकते अतः भक्त सर्वदा सर्वत्र निरपेक्ष होकर केवल भक्ति का ही पालन करता है तथा उसे केवल भगवान का ही एकमात्र भरोसा रहता है। भक्तो को चाहिये कि वह अपने सभी सहकर्मों व धार्मिक अनुष्ठानों का एक ही फल प्राप्त करने की इच्छा रखे और वह यह है कि भगवान में प्रेम। उनके चरणों में भक्ति निरंतर बढ़ती जाय तथा प्रेम प्रवाह तनिक भी शिथिल न हो क्योंकि भक्ति ही इस विश्व की सर्वाधिक मूल्यवान निधि और कल्याणकारी तत्व है। महर्षि वाल्मीकि कहते हैं कि – स्वामी, सखा, पितु, मातु, गुरु जिन्ह के सब तुम तात। मन मंदिर तिन्ह के बसहु सीय सहित दोउ भ्रात ।।
अर्थात जो आपको ही अपना स्वामी, पित्र, माता, पिता व गुरु सब कुछ मानते हैं उनके मन मंदिर में आप भगवती सीता व अनुज लक्ष्मण के साथ अवश्य निवास करें क्योंकि वे आपके अनन्य भक्त हैं। कहने का आशय यह है कि भगवान श्री राम किसी उपहार, स्वर्ण, आभूषण, धन, सम्पत्ति आदि की अपेक्षा नहीं रखते उन्हें तो सिर्फ निश्छल भक्ति चाहिये। बस एक बार सच्चे हृदय से उन्हें ही अपना सब कुछ मानते हुये पुकार लीजिए फिर सब कुछ उन पर छोड़ दीजिए।
भगवान श्री राम (Jai Shree Ram) अपने भक्तों पर कितना स्नेह रखते हैं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पवनपुत्र हनुमान हैं।
भगवान श्री राम (Jai Shree Ram) अपने भक्तों पर कितना स्नेह रखते हैं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पवनपुत्र हनुमान हैं। आवश्यकता है तो बस हनुमान की तरह निर्मल हृदय से भगवान के चरणों में अपना सर्वस्व न्योछावर करने की फिर आपको कब क्या चाहिये और आपका हित किस प्रकार होगा यह सब उन्हें ही तय करना है। जो व्यक्ति पूर्ण श्रृद्धा व विश्वास के साथ भगवान श्री राम चन्द्र जी की उपासना करते हैं उनके लिए इस लोक तथा परलोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। अज्ञान के अंधकार रूपी समुद्र में निमग्न प्राणियों को शिक्षा देने के लिये अवतीर्ण जगद् गुरु व्यास जी के अनुसार जिसने प्रभु श्री राम का स्पर्श किया था, उनके द्वारा छुआ गया, जिसने उन्हें देखा या उनके द्वारा देखा गया, जो उनके साथ बैठा, उठा या चला अथवा कुछ बात की वे सब के सब उस परम धाम को प्राप्त हुये जहाँ बड़े-बड़े योगिन्द्र, मुनिन्द्र भी बड़ी कठिन साधना से पहुँचते हैं श्रीमद् भागवत में महर्षि व्यास ने कहा कि जो प्राणी अपने कानों से श्री राम का चरित्र सुनता है उसे सरलता, कोमलता आदि गुणों की प्राप्ति तो होती है वह समस्त कर्म बन्धनों से मुक्त हो जाता है।
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