Desi Kahani Hindi: समय परिवर्तनशील है और समय का चक्र घूमता है तो बहुत कुछ परिवर्तन लाता है. इस कहानी में समय का महत्त्व समझाया गया है और साथ ही युवा पीढ़ी पुरानी संस्कृति को भूलकर नयी संस्कृति को अपनाने के लिए आतुर है. इस आर्टिकल को ध्यानपूर्वक अंत तक पढेंगे तब आपको समय का महत्व समझ में आएगा
Table of Contents
इस Desi Kahani Hindi में बचपन की बातों को ताज़ा कर रहा हूँ
Desi Kahani Hindi: यह बात उस समय की है, जब मै 4-5 वर्ष का होगा। मुझे अपने बचपन की कुछ बातों को याद करना और उसमें कुछ अच्छी बातों को चुन कर अपना विश्लेषण करना अच्छा लगता हैं। यह उस समय की बात है जब मैं और गांव के ग्वाले, गाय चराने जाया करते थे। जिस जगह गायों को चराया जाता था वह स्थान गांव से कुछ दूरी पर बाणगंगा नदी के किराने पर है। गांव में लोग उस जगह को आखरी बोलते थे। और वह आखरी जो की एक बहुत बड़ा भाग था। जिसमें गांव की सभी गायो को आखरी पर ही चराने के लिए ले जाया जाता था। पास से ही एक नदी गुजरती है, जिसका नाम बाणगंगा है। (कहते है, अर्जुन के तीर से यह नदी निकलती है ) इस नदी के किनारे ही, आखरी वह स्थान है जहां गाये चरा करती थी। आज उस जगह पर खेत हो गये है। उस समय ग्वाले मिलकर खेला करते थे. एक पेड़ था, खेजड़ी जिसके निचे पथर के खाल महाराज बैठाये गये थे। वहां पर हर साल सत्यनारायण भगवान की कथा का पाठ होता था। आखरी पर हम सभी ग्वाले मिलकर तरह-तरह के खेल खेला करते थे। जिसमें कुछ (सारस कुण्डिया कबड्ड़ी, खो-खो कलाम डाला, अन्टी) जिसमें बहुत आनंद आता था।
Desi Kahani Hindi: भारतीय पीढ़ी अपनी पुरानी संस्कृति को भूलकर एक नई संस्कृति को अपनाने पर आतुर है।
Desi Kahani Hindi: उस समय वह बचपन इस तरह निकलता गया और यादें पीछे छूटती गयी। आज मेरे गांव में सब कुछ बदल गया है। आखरी / ओसरी जैसा शब्द नई पीढ़ी नहीं समझती है। क्योंकि यह समय-समय की बात है। समय परिवर्तनशील है। हर वक्त गुजर जाने के बाद उस वक्त की हर चीज़ धीरे-धीरे भुलाती जाती है। ओसरी से मेरा मतलब है गांव के घर से गाये चराने का नबंर आता था। उस नंबर को ओसरी कहते है। अर्थात अपनी गाय चराने की बारी को ओसरी कहते है। जब मेरे घर का नंबर आता तो मम्मी-पापा के साथ में भी जाता था। वहां पर भी मम्मी खाना ले जाती थी। वही पर पूरा परिवार भोजन करता था। आज उस जगह पर एक तलाई (छोटा लाताब ) बन गई। खेत बन गए। पर मुझे उस वक्त की याद इसलिए आ गई की मेरा बचपन उसी जगह पर खेल-कूद में गुजरा है। और बचपन की यादों को में याद करता हु तो मन में आनंद की अनुभूति इस तरह से होती है मानो आज भी वह समय गुजरा नहीं है।
Desi Kahani Hindi: संस्कृति को भूलना मेरे ही, गाँव की समस्या नही है
Desi Kahani Hindi: बचपन से युवा की ओर बढ़ते हुए मैंने अपने गांव की जो उन्नति या विकास देखा वह ज़्यादा तो नहीं है। पर आज उस गांव में स्कूल है, पक्की सड़क है और लोग भी समझदार हो गए है। परन्तु जो आज की पीढ़ी है, उसमें मैं भी शामिल हु। अपने संस्कार और संस्कृति से दूर भाग रहा हूँ। शहरों की नकलकर विकास की ओर बढ़रहा हूँ, किन्तु ये संस्कार और संस्कृति का भूलना मेरे गांव की समस्या नहीं है। यह समस्या पुरे देश की है। क्योकि आज की भारतीय पीढ़ी अपनी पुरानी संस्कृति को भूलकर एक नई संस्कृति को अपनाने पर तुली है। यह नयी संस्कृति पश्चिमी संस्कृति है। मुझे अपने गांव की हर चीज़ अच्छी लगती है, किसी भी वक्त को याद करना मेरे जीवन की एक विस्मय घटना थी। जिसे में आज याद करते हुए, अपने जीवन के रास्तों को आसान बनाते हुए पार करते आया हूँ। जीवन को निरंतर एक ऊंचाई की ओर अग्रेसित कर रहा हूँ।
निष्कर्ष :
इस कहानी का निष्कर्ष यह है की हमें अपनी पुरानी संस्कृति को भुलाना नहीं चाहिए. आज के दौर में हम पश्चिमी संस्कृति को अपनाते जा रहे है , जबकि हम अपनी मूल भारतीय संस्कृति को भूलते जा रहे है, वेदों पुराणों में आज के दौर की सभी समस्याओ का हल मौजूद है वह समय भारतीय संस्कृति का मूल दौर था
ये भी पढ़े :
Desi Kahani : कवेलू का टापरा | एक गरीब परिवार की कहानी
बागेश्वर धाम की आगामी कथाएं | आगामी श्री मनुमंत कथाए दिसम्बर 2023 में कहाँ कहाँ पर होने वाली है